Wednesday, 26 February 2014

एसी उलझी निक़ाब हाथों से

एसी उलझी निक़ाब हाथों से । 
गिर पडी सब किताब हाथों से ॥ 

मूड कुछ था शरारती उनका । 
छीन भागे गुलाब हाथों से ॥ 

अक्स जब बन नहीं सका अन्वर । 
कर दिया सब ख़राब हाथों से ॥ 

एसे साक़ी को अब तरसता हूँ । 
जो पिला दे शराब हाथों से ॥ 

आज इनआम कुछ तो मिल जाए । 
आपके लाजवाब हाथों से ॥ 

उसके एहसास से लगा जैसे । 
छू लिया आफ़ताब हाथों से ॥ 

उम्र भर बात का तेरी 'सैनी'। 
ख़ुद ही लिक्खा जवाब हाथों से ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी

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