Wednesday, 12 February 2014

ख़ुदा मिला होता

मैं इरादों का क्यूँ बुरा होता ।
तू अगर ख़ुद ही में भला होता ॥

मुझसे इक बार तो कहा होता ।
तेरे क़दमों में गिर गया होता ॥

तेरे हिस्से की प्यास ले लेता ।
इससे तेरा अगर भला होता ॥

दिल में जज़्बात गर न होते तो ।
मैं भी इस्पात का बना होता ॥

दोस्ती की नहीं अमीरों से ।
मैं समुंदर में मिल चुका होता ॥

कितनी मुश्किल ख़ुदा की हो जाती ।
गर किसी को ख़ुदा मिला होता ॥

आज बेफ़िक्र होके सोता वो ।
काश 'सैनी'बिना पढ़ा होता ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी     

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