मैं इरादों का क्यूँ बुरा होता ।
तू अगर ख़ुद ही में भला होता ॥
मुझसे इक बार तो कहा होता ।
तेरे क़दमों में गिर गया होता ॥
तेरे हिस्से की प्यास ले लेता ।
इससे तेरा अगर भला होता ॥
दिल में जज़्बात गर न होते तो ।
मैं भी इस्पात का बना होता ॥
दोस्ती की नहीं अमीरों से ।
मैं समुंदर में मिल चुका होता ॥
कितनी मुश्किल ख़ुदा की हो जाती ।
गर किसी को ख़ुदा मिला होता ॥
आज बेफ़िक्र होके सोता वो ।
काश 'सैनी'बिना पढ़ा होता ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
तू अगर ख़ुद ही में भला होता ॥
मुझसे इक बार तो कहा होता ।
तेरे क़दमों में गिर गया होता ॥
तेरे हिस्से की प्यास ले लेता ।
इससे तेरा अगर भला होता ॥
दिल में जज़्बात गर न होते तो ।
मैं भी इस्पात का बना होता ॥
दोस्ती की नहीं अमीरों से ।
मैं समुंदर में मिल चुका होता ॥
कितनी मुश्किल ख़ुदा की हो जाती ।
गर किसी को ख़ुदा मिला होता ॥
आज बेफ़िक्र होके सोता वो ।
काश 'सैनी'बिना पढ़ा होता ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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