Monday, 3 February 2014

चुरा के चल

न नज़र किसी से चुरा  के चल ।
ज़रा अपने सर को उठा  के चल ॥

ये दुपट्टा सर से खिसक गया ।
कोई पिन तो इसमें लगा  के चल ॥

मेरे पावँ तेज़ न चल सकें ।
मेरे पा से पा मिला  के चल ॥

ये हवाएँ धूल  भरी हुईं ।
तू निक़ाब रुख़ पे गिरा  के चल ॥

जो सुना  नहीं वो सुना मुझे ।
नया गीत अपना सुना  के चल ॥

तेरा इश्क़ कोई गुनाह नहीं ।
ये ज़माने भर को बता  के चल ॥

तुझे ढूँढता फिरे  दर -ब -दर ।
तू न 'सैनी' को यूँ भुला  के चल ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

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