न नज़र किसी से चुरा के चल ।
ज़रा अपने सर को उठा के चल ॥
ये दुपट्टा सर से खिसक गया ।
कोई पिन तो इसमें लगा के चल ॥
मेरे पावँ तेज़ न चल सकें ।
मेरे पा से पा मिला के चल ॥
ये हवाएँ धूल भरी हुईं ।
तू निक़ाब रुख़ पे गिरा के चल ॥
जो सुना नहीं वो सुना मुझे ।
नया गीत अपना सुना के चल ॥
तेरा इश्क़ कोई गुनाह नहीं ।
ये ज़माने भर को बता के चल ॥
तुझे ढूँढता फिरे दर -ब -दर ।
तू न 'सैनी' को यूँ भुला के चल ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
ज़रा अपने सर को उठा के चल ॥
ये दुपट्टा सर से खिसक गया ।
कोई पिन तो इसमें लगा के चल ॥
मेरे पावँ तेज़ न चल सकें ।
मेरे पा से पा मिला के चल ॥
ये हवाएँ धूल भरी हुईं ।
तू निक़ाब रुख़ पे गिरा के चल ॥
जो सुना नहीं वो सुना मुझे ।
नया गीत अपना सुना के चल ॥
तेरा इश्क़ कोई गुनाह नहीं ।
ये ज़माने भर को बता के चल ॥
तुझे ढूँढता फिरे दर -ब -दर ।
तू न 'सैनी' को यूँ भुला के चल ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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