Wednesday, 29 January 2014

फ़ल्सफ़ा -ए -इश्क़

कभी मजनूँ बताते हैं कभी कहते हैं दीवाना ।
सबक़ वो आशिक़ी का चाहते हैं हमको समझाना ॥

नहीं समझा मैं अब तक भी तुम्हारे प्यार का मतलब ।
कभी फ़ुर्सत में मुझको फ़ल्सफ़ा -ए -इश्क़ बतलाना ॥

हमेशा शेरनी जैसी चमक रखती हो आँखों में ।
कभी तो देख कर मुझको हया से आप शर्माना ॥

अगर तारीफ़ ज़ुल्फ़ों की करूँ सावन बरसता है ।
मेरी आदत में शामिल है हमेशा भीग कर जाना ॥

तुम्हारे सामने पड़ते ही उड़ जाते हैं मेरे होश ।
ज़बाँ का भी उसी पल से शुरू होता है तुतलाना ॥

किवाड़ अपने मैं दिल के खोल कर बेख़ौफ़ सोता हूँ ।
करे जब भी तुम्हारा मन तो बेखटके चले आना ॥

हमें मंजूर है 'सैनी तेरा  ये चुलबुलापन भी ।
शिकन तू ज़िंदगी भर अपने चेहरे पर नहीं लाना ॥

डा०सुरेन्द्र सैनी   

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