दिल को रख कर खुला नहीं मिलता ।
कोई मतलब बिना नहीं मिलता ॥
लोग कितने ही रोज़ मिलते हैं ।
एक भी दोस्त सा नहीं मिलता ॥
जिनको मिलता है ज़र विरासत में ।
दान का हौसला नहीं मिलता ॥
जिसपे चल कर मिले कभी मंज़िल ।
आज वो नक़श-ए -पा नहीं मिलता ॥
पारसाई का ढोंग करते हैं ।
पर कोई पारसा नहीं मिलता ॥
ज़ख़्म खाये पड़ा कोई कब से ।
नाम को रहनुमा नहीं मिलता ॥
जब भी इनआम बांटे जाते हैं ।
नाम 'सैनी' ही का नहीं मिलता ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
कोई मतलब बिना नहीं मिलता ॥
लोग कितने ही रोज़ मिलते हैं ।
एक भी दोस्त सा नहीं मिलता ॥
जिनको मिलता है ज़र विरासत में ।
दान का हौसला नहीं मिलता ॥
जिसपे चल कर मिले कभी मंज़िल ।
आज वो नक़श-ए -पा नहीं मिलता ॥
पारसाई का ढोंग करते हैं ।
पर कोई पारसा नहीं मिलता ॥
ज़ख़्म खाये पड़ा कोई कब से ।
नाम को रहनुमा नहीं मिलता ॥
जब भी इनआम बांटे जाते हैं ।
नाम 'सैनी' ही का नहीं मिलता ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
No comments:
Post a Comment