Wednesday, 8 January 2014

फ़ुर्सत मुझे कहाँ

अब प्यार-व्यार जो करूँ  फ़ुर्सत मुझे कहाँ । 
फ़ुर्क़त के दर्द को सहूँ  फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥ 

सब कुछ निसार तो किया लोगों के वास्ते । 
झँझट में और अब पडूँ  फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥ 

जिनके अदब के वास्ते मेरा अदब गया । 
 उनके लिए ही फिर मरूँ  फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥ 

बेकाम मैं नहीं मुझे भी कितने काम हैं । 
सबको सफ़ाई आज दूँ  फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥ 

दुन्या के दर्द -ओ-ग़म में तो रोता रहा हूँ मैं । 
मैं ख़ुद पे थोड़ा रो सकूँ  फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥ 

लम्बे सफ़र की धूप में कुछ तो हैं सायबान । 
दो पल  कहीँ गुज़ार लूँ  फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥ 

थी उनसे जो शिकायतें मन में ही रह गयीं । 
'सैनी' से जाके जो कहूँ  फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी     

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