अब प्यार-व्यार जो करूँ फ़ुर्सत मुझे कहाँ ।
फ़ुर्क़त के दर्द को सहूँ फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥
सब कुछ निसार तो किया लोगों के वास्ते ।
झँझट में और अब पडूँ फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥
जिनके अदब के वास्ते मेरा अदब गया ।
उनके लिए ही फिर मरूँ फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥
बेकाम मैं नहीं मुझे भी कितने काम हैं ।
सबको सफ़ाई आज दूँ फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥
दुन्या के दर्द -ओ-ग़म में तो रोता रहा हूँ मैं ।
मैं ख़ुद पे थोड़ा रो सकूँ फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥
लम्बे सफ़र की धूप में कुछ तो हैं सायबान ।
दो पल कहीँ गुज़ार लूँ फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥
थी उनसे जो शिकायतें मन में ही रह गयीं ।
'सैनी' से जाके जो कहूँ फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
फ़ुर्क़त के दर्द को सहूँ फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥
सब कुछ निसार तो किया लोगों के वास्ते ।
झँझट में और अब पडूँ फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥
जिनके अदब के वास्ते मेरा अदब गया ।
उनके लिए ही फिर मरूँ फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥
बेकाम मैं नहीं मुझे भी कितने काम हैं ।
सबको सफ़ाई आज दूँ फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥
दुन्या के दर्द -ओ-ग़म में तो रोता रहा हूँ मैं ।
मैं ख़ुद पे थोड़ा रो सकूँ फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥
लम्बे सफ़र की धूप में कुछ तो हैं सायबान ।
दो पल कहीँ गुज़ार लूँ फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥
थी उनसे जो शिकायतें मन में ही रह गयीं ।
'सैनी' से जाके जो कहूँ फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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