Thursday, 2 January 2014

मुस्कुराने पर

तिरछी-तिरछी नज़रों के मैं रहा निशाने पर ।
ये पता चला मुझको थोड़ा मुस्कुराने पर ॥

जानेमन के कूचे में कर्फ्यू जैसा आलम है ।
आज भी है पाबंदी मेरे आने-जाने पर ॥

आप तो न थे एसे फिर हमें बताओ ये ।
आशियाँ जला डाला किसके बरगलाने पर ॥

प्यार मुझसे करते हो पूछता था बरसों से ।
अब कहीं क़ुबूला है थोडा हिचकिचाने पर ॥

सोच कर ज़बाँ खोलो क्योंकि उनकी महफ़िल में ।
सर क़लम किये जाते आवाज़ें उठाने पर ॥

है तनातनी मुझसे अपने सारे लोगों की ।
जब से वो पधारें है मेरे आशियाने पर ॥

जब सज़ा मिली उनको उनसे छेड़खानी की ।
आगये रक़ीबों के होश फिर ठिकाने पर ॥

इम्तिहान क्या लेगा तू मेरी मुहब्बत का ।
ज़िंदगी निछावर है तेरे मुस्कुराने पर ॥

'सैनी' तेरा मुश्किल में आज तो वुजूद आया ।
क्या मज़ा मिला तुझको लोगों को हँसाने पर ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी

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