तिरछी-तिरछी नज़रों के मैं रहा निशाने पर ।
ये पता चला मुझको थोड़ा मुस्कुराने पर ॥
जानेमन के कूचे में कर्फ्यू जैसा आलम है ।
आज भी है पाबंदी मेरे आने-जाने पर ॥
आप तो न थे एसे फिर हमें बताओ ये ।
आशियाँ जला डाला किसके बरगलाने पर ॥
प्यार मुझसे करते हो पूछता था बरसों से ।
अब कहीं क़ुबूला है थोडा हिचकिचाने पर ॥
सोच कर ज़बाँ खोलो क्योंकि उनकी महफ़िल में ।
सर क़लम किये जाते आवाज़ें उठाने पर ॥
है तनातनी मुझसे अपने सारे लोगों की ।
जब से वो पधारें है मेरे आशियाने पर ॥
जब सज़ा मिली उनको उनसे छेड़खानी की ।
आगये रक़ीबों के होश फिर ठिकाने पर ॥
इम्तिहान क्या लेगा तू मेरी मुहब्बत का ।
ज़िंदगी निछावर है तेरे मुस्कुराने पर ॥
'सैनी' तेरा मुश्किल में आज तो वुजूद आया ।
क्या मज़ा मिला तुझको लोगों को हँसाने पर ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
ये पता चला मुझको थोड़ा मुस्कुराने पर ॥
जानेमन के कूचे में कर्फ्यू जैसा आलम है ।
आज भी है पाबंदी मेरे आने-जाने पर ॥
आप तो न थे एसे फिर हमें बताओ ये ।
आशियाँ जला डाला किसके बरगलाने पर ॥
प्यार मुझसे करते हो पूछता था बरसों से ।
अब कहीं क़ुबूला है थोडा हिचकिचाने पर ॥
सोच कर ज़बाँ खोलो क्योंकि उनकी महफ़िल में ।
सर क़लम किये जाते आवाज़ें उठाने पर ॥
है तनातनी मुझसे अपने सारे लोगों की ।
जब से वो पधारें है मेरे आशियाने पर ॥
जब सज़ा मिली उनको उनसे छेड़खानी की ।
आगये रक़ीबों के होश फिर ठिकाने पर ॥
इम्तिहान क्या लेगा तू मेरी मुहब्बत का ।
ज़िंदगी निछावर है तेरे मुस्कुराने पर ॥
'सैनी' तेरा मुश्किल में आज तो वुजूद आया ।
क्या मज़ा मिला तुझको लोगों को हँसाने पर ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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