Thursday, 23 January 2014

ईमान तो है

मन टूट गया तन टूट गया फिर भी ये बचा ईमान तो है । 
बेदम ही सही बरहम ही सही पर आज खड़ा इंसान तो है ॥ 

ज़र लूट लिया घर लूट लिया फिर भी वो लुटेरे सोच रहे।
लूटने के लिए लोगों में बची महफूज़ अभी भी जान तो है ॥ 

वो भूल गया सो भूल गया मुझको ये भरम बाक़ी है अभी । 
अन्जान नगर में अब भी मेरी थोड़ी ही सही पहचान तो है ॥ 

कर ज़ुल्म-ओ-सितम इंसान पे तू लिक्खा है कहाँ ये भी तो बता । 
तू पन्ने पलट कर देख ज़रा गीता न सही क़ुर्आन तो है ॥ 

तदबीर बनाता हूँ जो कभी तदबीर बिगड़ जाती है वही । 
कह दोगे जो तुम कर दूंगा वही यह कहना बड़ा आसान तो है ॥ 

जो तुमने लिया वो तुमने दिया ये बात नहीं यूँ ख़त्म हुई । 
जो काम हुआ उसका भी मियाँ अब मानने को एहसान तो है ॥ 

रोटी नहीं दे सकती है ग़ज़ल 'सैनी' ये हक़ीक़त जानता है । 
पर उसकी अदब में थोड़ी बहुत ग़ज़लों से ही क़ाइम शान तो है ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी

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