मन टूट गया तन टूट गया फिर भी ये बचा ईमान तो है ।
बेदम ही सही बरहम ही सही पर आज खड़ा इंसान तो है ॥
ज़र लूट लिया घर लूट लिया फिर भी वो लुटेरे सोच रहे।
लूटने के लिए लोगों में बची महफूज़ अभी भी जान तो है ॥
वो भूल गया सो भूल गया मुझको ये भरम बाक़ी है अभी ।
अन्जान नगर में अब भी मेरी थोड़ी ही सही पहचान तो है ॥
कर ज़ुल्म-ओ-सितम इंसान पे तू लिक्खा है कहाँ ये भी तो बता ।
तू पन्ने पलट कर देख ज़रा गीता न सही क़ुर्आन तो है ॥
तदबीर बनाता हूँ जो कभी तदबीर बिगड़ जाती है वही ।
कह दोगे जो तुम कर दूंगा वही यह कहना बड़ा आसान तो है ॥
जो तुमने लिया वो तुमने दिया ये बात नहीं यूँ ख़त्म हुई ।
जो काम हुआ उसका भी मियाँ अब मानने को एहसान तो है ॥
रोटी नहीं दे सकती है ग़ज़ल 'सैनी' ये हक़ीक़त जानता है ।
पर उसकी अदब में थोड़ी बहुत ग़ज़लों से ही क़ाइम शान तो है ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
बेदम ही सही बरहम ही सही पर आज खड़ा इंसान तो है ॥
ज़र लूट लिया घर लूट लिया फिर भी वो लुटेरे सोच रहे।
लूटने के लिए लोगों में बची महफूज़ अभी भी जान तो है ॥
वो भूल गया सो भूल गया मुझको ये भरम बाक़ी है अभी ।
अन्जान नगर में अब भी मेरी थोड़ी ही सही पहचान तो है ॥
कर ज़ुल्म-ओ-सितम इंसान पे तू लिक्खा है कहाँ ये भी तो बता ।
तू पन्ने पलट कर देख ज़रा गीता न सही क़ुर्आन तो है ॥
तदबीर बनाता हूँ जो कभी तदबीर बिगड़ जाती है वही ।
कह दोगे जो तुम कर दूंगा वही यह कहना बड़ा आसान तो है ॥
जो तुमने लिया वो तुमने दिया ये बात नहीं यूँ ख़त्म हुई ।
जो काम हुआ उसका भी मियाँ अब मानने को एहसान तो है ॥
रोटी नहीं दे सकती है ग़ज़ल 'सैनी' ये हक़ीक़त जानता है ।
पर उसकी अदब में थोड़ी बहुत ग़ज़लों से ही क़ाइम शान तो है ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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