गर वो खुल कर मिला नहीं होता ।
दिल यूँ उस पर फ़िदा नहीं होता ॥
ख्वामख्वाह वो सज़ा नहीं देता ।
क्योंकि ग़ाफ़िल ख़ुदा नहीं होता ॥
सोच है आपकी फ़क़त अपनी ।
काम छोटा- बड़ा नहीं होता ॥
ज़ह्न में क्या चले किसी के कब ।
शक्ल पर कुछ लिखा नहीं होता ॥
इतनी उम्मीद मत किया कीजे ।
हर कोई आपसा नहीं होता ॥
बज़्म मरघट सी मुझको लगती है ।
जिसमें कुछ शोर सा नहीं होता ॥
ख़ुद से बावस्तगी नहीं जिसकी ।
वो कभी आपका नहीं होता ॥
आप जो भी करें मगर कुछ भी ।
उसकी मर्ज़ी बिना नहीं होता ॥
तुमसे कुछ अर्ज-ए -हाल कर तो दे ।
'सैनी' का हौसला नहीं होता ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
दिल यूँ उस पर फ़िदा नहीं होता ॥
ख्वामख्वाह वो सज़ा नहीं देता ।
क्योंकि ग़ाफ़िल ख़ुदा नहीं होता ॥
सोच है आपकी फ़क़त अपनी ।
काम छोटा- बड़ा नहीं होता ॥
ज़ह्न में क्या चले किसी के कब ।
शक्ल पर कुछ लिखा नहीं होता ॥
इतनी उम्मीद मत किया कीजे ।
हर कोई आपसा नहीं होता ॥
बज़्म मरघट सी मुझको लगती है ।
जिसमें कुछ शोर सा नहीं होता ॥
ख़ुद से बावस्तगी नहीं जिसकी ।
वो कभी आपका नहीं होता ॥
आप जो भी करें मगर कुछ भी ।
उसकी मर्ज़ी बिना नहीं होता ॥
तुमसे कुछ अर्ज-ए -हाल कर तो दे ।
'सैनी' का हौसला नहीं होता ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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