सलामत ज़िंदगी रक्खी किसी के इश्क़ ने मेरी ।
बचा कर हर ख़ुशी रक्खी किसी के इश्क़ ने मेरी ॥
अना के टूटने के सैंकड़ों इमकान थे लेकिन ।
अना मज़बूत ही रक्खी किसी के इश्क़ ने मेरी ॥
ख़ुदा परवर की नज़रों में न गिर जाऊँ किसी दिन मैं ।
नज़र में बंदगी रक्खी किसी के इश्क़ ने मेरी ॥
तरद्दुद में भी उम्दा सोच ही क़ाइम रही अब तक ।
अटल शाइस्तगी रक्खी किसी के इश्क़ ने मेरी ॥
मुसीबत तो बहुत आयी मेरे कमज़ोर से तन पर ।
अलालत में कमी रक्खी किसी के इश्क़ ने मेरी ॥
चमन में जा के अपनी हर कली से बात करता हूँ ।
शिगुफ़्ता हर कली रक्खी किसी के इश्क़ ने मेरी ॥
बलंदी पर नहीं पहुँचा तो इसका ग़म नहीं 'सैनी' ।
सुखन में पुख़्तगी रक्खी किसी के इश्क़ ने मेरी ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
बचा कर हर ख़ुशी रक्खी किसी के इश्क़ ने मेरी ॥
अना के टूटने के सैंकड़ों इमकान थे लेकिन ।
अना मज़बूत ही रक्खी किसी के इश्क़ ने मेरी ॥
ख़ुदा परवर की नज़रों में न गिर जाऊँ किसी दिन मैं ।
नज़र में बंदगी रक्खी किसी के इश्क़ ने मेरी ॥
तरद्दुद में भी उम्दा सोच ही क़ाइम रही अब तक ।
अटल शाइस्तगी रक्खी किसी के इश्क़ ने मेरी ॥
मुसीबत तो बहुत आयी मेरे कमज़ोर से तन पर ।
अलालत में कमी रक्खी किसी के इश्क़ ने मेरी ॥
चमन में जा के अपनी हर कली से बात करता हूँ ।
शिगुफ़्ता हर कली रक्खी किसी के इश्क़ ने मेरी ॥
बलंदी पर नहीं पहुँचा तो इसका ग़म नहीं 'सैनी' ।
सुखन में पुख़्तगी रक्खी किसी के इश्क़ ने मेरी ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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