Friday, 7 February 2014

मेरे ख़िलाफ़

ख़ारों में उम्र भर पली साज़िश मेरे ख़िलाफ़ ।
दिल में गुलों के भी रही आतिश मेरे ख़िलाफ़ ॥

वादा तो उम्र भर का था छोड़ा ये फिर क्यूँ साथ ।
मन में कहाँ से  आ गयी रंजिश मेरे ख़िलाफ़ ॥

दो गज़ ज़मीँ खुली मिली इस आसमाँ तले ।
आंधी तो थी  मगर हुई बारिश मेरे ख़िलाफ़ ॥

आख़िर  मुझे बचा लिया मेरे ख़ुदा ने आज ।
यूँ दुश्मनों ने की बहुत साज़िश मेरे ख़िलाफ़ ॥

बचता -बचाता आ गया तेरी पनाह में ।
मुँह खोल कर खड़ी हुई गर्दिश मेरे ख़िलाफ़ ॥

सारे जहाँ से दोस्ती का दम तो मैं भरूँ ।
लोगों ने मिलके  डाल दी बंदिश मेरे ख़िलाफ़ ॥

हिंदी-ओ-उर्दू ही बनी 'सैनी'हमेशा ढाल ।
हालाकि बोलती रही इंग्लिश मेरे ख़िलाफ़ ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

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