इनआम नहीं ये काम का है ।
जल्वा तो फ़क़त ये नाम का है ॥
जिस शेर का मतलब पूछ लिया ।
वो शेर भला किस काम का है ॥
इस ख़त में क्यूँ मेरा नाम लिखा ।
ये ख़त तो किसी गुमनाम का है ॥
हर सिम्त जो तेरा ज़िक्र हुआ ।
ये काम तेरे बदनाम का है ॥
मिलना था उन्हें तो आज अभी ।
अब वक़्त मुक़र्र शाम का है ॥
शुरुआत करें तो कैसे करें ।
बस डर जो उन्हें अंजाम का है ॥
अब और ग़ज़ल 'सैनी' न कहो ।
ये वक़्त अभी आराम का है ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
जल्वा तो फ़क़त ये नाम का है ॥
जिस शेर का मतलब पूछ लिया ।
वो शेर भला किस काम का है ॥
इस ख़त में क्यूँ मेरा नाम लिखा ।
ये ख़त तो किसी गुमनाम का है ॥
हर सिम्त जो तेरा ज़िक्र हुआ ।
ये काम तेरे बदनाम का है ॥
मिलना था उन्हें तो आज अभी ।
अब वक़्त मुक़र्र शाम का है ॥
शुरुआत करें तो कैसे करें ।
बस डर जो उन्हें अंजाम का है ॥
अब और ग़ज़ल 'सैनी' न कहो ।
ये वक़्त अभी आराम का है ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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