उन्हें जो देखता पाया गया हूँ ।
"भरी महफ़िल से उठवाया गया हूँ" ॥
मुझे फांसी मिली बस जुर्म ये था ।
धरम में मुब्तिला पाया गया हूँ ॥
डुबा कर नफ़रतों की चाशनी में ।
तुम्हारे सामने लाया गया है ॥
मैं हूँ मज़लूम का वो ख़ाक हिस्सा ।
जो सारा बीच में खाया गया हूँ ॥
नहीं कुछ वज़न था बातों में मेरी ।
मगर सिक्कों में तुलवाया गया हूँ ॥
बना इंसानियत की लाश हूँ मैं ।
हज़ारों बार दफ़नाया गया हूँ ॥
क़लम को बेच कर 'सैनी' ने लिक्खा ।
फ़साना हूँ जो लिखवाया गया हूँ ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
"भरी महफ़िल से उठवाया गया हूँ" ॥
मुझे फांसी मिली बस जुर्म ये था ।
धरम में मुब्तिला पाया गया हूँ ॥
डुबा कर नफ़रतों की चाशनी में ।
तुम्हारे सामने लाया गया है ॥
मैं हूँ मज़लूम का वो ख़ाक हिस्सा ।
जो सारा बीच में खाया गया हूँ ॥
नहीं कुछ वज़न था बातों में मेरी ।
मगर सिक्कों में तुलवाया गया हूँ ॥
बना इंसानियत की लाश हूँ मैं ।
हज़ारों बार दफ़नाया गया हूँ ॥
क़लम को बेच कर 'सैनी' ने लिक्खा ।
फ़साना हूँ जो लिखवाया गया हूँ ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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