Wednesday, 5 March 2014

उन्हें जो देखता पाया गया हूँ

उन्हें जो देखता पाया गया हूँ । 
"भरी महफ़िल से उठवाया गया हूँ" ॥ 

मुझे फांसी मिली बस जुर्म ये था । 
धरम में मुब्तिला पाया गया हूँ ॥

डुबा कर नफ़रतों की चाशनी में । 
तुम्हारे सामने लाया गया है ॥ 

मैं हूँ मज़लूम का वो ख़ाक हिस्सा । 
जो सारा बीच में खाया गया हूँ ॥ 

नहीं कुछ वज़न था बातों में मेरी । 
मगर सिक्कों में तुलवाया गया हूँ ॥ 

बना इंसानियत की लाश हूँ मैं । 
हज़ारों बार दफ़नाया गया हूँ ॥ 

क़लम को बेच कर 'सैनी' ने लिक्खा । 
फ़साना हूँ जो लिखवाया गया हूँ ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी

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