वक़्त बेवक़्त तुझे याद किये जाता हूँ ।
तेरे आने के तस्स्वुर में जिये जाता हूँ ॥
मेरे अश्कों से न जुड़ जाए कहीं तेरा नाम ।
ज़ब्त अश्कों को मैं आँखों में किये जाता हूँ ॥
नाम अब जोड़ दिया मैंने ख़ुदा से तेरा ।
मैं तो हर वक़्त तेरा नाम लिये जाता हूँ ॥
ज़ख़्म देते रहे जो मुझको ज़माने वाले ।
तेरी यादों के ही धागों से सिये जाता हूँ ॥
मैं तो मकतब में पढ़ाता हूँ सबक़ उल्फ़त का ।
आओ तुमको भी मैं कुछ इल्म दिये जाता हूँ ॥
अब तो कतराने लगे आगे क़दम बढ़ने से ।
ज़िंदगी रुक गई आराम किये जाता हूँ ॥
जब भी 'सैनी' की मुझे याद बहुत आती है ।
जाम पे जाम लगातार पिये जाता हूँ ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
तेरे आने के तस्स्वुर में जिये जाता हूँ ॥
मेरे अश्कों से न जुड़ जाए कहीं तेरा नाम ।
ज़ब्त अश्कों को मैं आँखों में किये जाता हूँ ॥
नाम अब जोड़ दिया मैंने ख़ुदा से तेरा ।
मैं तो हर वक़्त तेरा नाम लिये जाता हूँ ॥
ज़ख़्म देते रहे जो मुझको ज़माने वाले ।
तेरी यादों के ही धागों से सिये जाता हूँ ॥
मैं तो मकतब में पढ़ाता हूँ सबक़ उल्फ़त का ।
आओ तुमको भी मैं कुछ इल्म दिये जाता हूँ ॥
अब तो कतराने लगे आगे क़दम बढ़ने से ।
ज़िंदगी रुक गई आराम किये जाता हूँ ॥
जब भी 'सैनी' की मुझे याद बहुत आती है ।
जाम पे जाम लगातार पिये जाता हूँ ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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