सुरागरसाँ कोई उसको कहीं से ढूंढ कर लाये ।
मेरे इस डूबते दिल को ज़रा तस्कीन मिल जाये ॥
ज़रा सा सर झुकाना था तो फिर चाँदी ही चाँदी थी ।
मगर मौक़े तो मैंने ये हज़ारों बार ठुकराये ॥
खड़ा हूँ आज दो-दो हाथ करने को अजल से मैं ।
अगर आना है तो आये न आना है नहीं आये ॥
मुरव्वत का किसी का क़र्ज़ हम लौटा नहीं सकते ।
हमारी जान हाज़िर है हमारी जान ले जाये ॥
मुक़द्दर ने तो दस्तक दी मगर जब तू नहीं माना ।
मुनासिब है कहाँ ये अब तू मल -मल हाथ पछताये ॥
चली जाती हैं घर की रौनकें डसती हैं तन्हाई ।
किसी आँगन में बंटवारे की जब दीवार उठ जाये ॥
मिज़ाज अब तक बदल पायी न लोगों का ग़ज़ल 'सैनी'।
अगरचे ख़ूब लोगों ने यहाँ दीवान छपवाये ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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