Thursday, 27 March 2014

समुंदर सूख जाते हैं


किसी की प्यास पर सारे समुंदर दौड़ आते हैं ।
मगर जब प्यास हो मुझको समुंदर सूख जाते हैं ॥

तलातुम में फँसा अक्सर सफ़ीना देख कर मेरा ।
किनारे पर खड़े बेशर्म कैसे मुस्कुराते हैं ॥

ज़रा इक बार आ जाओ मुक़ाबिल आप लोगों के ।
फंसाने के लिए सारे फ़साने ढूंढ लाते हैं ॥

बचा लेता है चारागर अगरचे साँप काटे तो ।
नहीं बचता जिसे इंसान अक्सर काट खाते हैं ॥

नहीं साबित जो कर पाते हैं ख़ुद को काम से अपने ।
वही दामन पकड़ कर और को पीछे हटाते हैं ॥

दिखाया रास्ता मैंने जिन्हे अब तक बलंदी का ।
न जाने क्यूँ मेरे रस्ते से नक़्श -ए -पा मिटाते हैं ॥

बड़े बेआबरू हो कर निकलते हैं वो महफ़िल से ।
क़ुसूर इतना है बस हक़ के लिए वो सर उठाते हैं ॥

कभी घुटते हैं दिल-दिल में कभी जलते हैं तिल-तिल कर।
ये शायर तब कहीं जाकर जहाँ को कुछ सुनाते हैं ॥

कभी फ़ुर्क़त के आलम में लिखी 'सैनी' ने जो नग़्मे।
हमारे लब उन्हें शिद्दत से अब भी गुनगुनाते हैं ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

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