एसी उलझी निक़ाब हाथों से ।
गिर पडी सब किताब हाथों से ॥
मूड कुछ था शरारती उनका ।
छीन भागे गुलाब हाथों से ॥
अक्स जब बन नहीं सका अन्वर ।
कर दिया सब ख़राब हाथों से ॥
एसे साक़ी को अब तरसता हूँ ।
जो पिला दे शराब हाथों से ॥
आज इनआम कुछ तो मिल जाए ।
आपके लाजवाब हाथों से ॥
उसके एहसास से लगा जैसे ।
छू लिया आफ़ताब हाथों से ॥
उम्र भर बात का तेरी 'सैनी'।
ख़ुद ही लिक्खा जवाब हाथों से ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
गिर पडी सब किताब हाथों से ॥
मूड कुछ था शरारती उनका ।
छीन भागे गुलाब हाथों से ॥
अक्स जब बन नहीं सका अन्वर ।
कर दिया सब ख़राब हाथों से ॥
एसे साक़ी को अब तरसता हूँ ।
जो पिला दे शराब हाथों से ॥
आज इनआम कुछ तो मिल जाए ।
आपके लाजवाब हाथों से ॥
उसके एहसास से लगा जैसे ।
छू लिया आफ़ताब हाथों से ॥
उम्र भर बात का तेरी 'सैनी'।
ख़ुद ही लिक्खा जवाब हाथों से ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी