Tuesday, 8 July 2014

कुछ पल


मयस्सर ज़िंदगी में सबको हों त्यौहार के कुछ पल |
दुआ करता हूँ सब के वास्ते हों प्यार के कुछ पल ||

बड़ी मुश्किल से मिलते हैं विसाल-ए –यार के कुछ पल |
गवाँ देना नहीं तकरार में ये प्यार के कुछ पल ||

यही होता रहा है हर किसी के साथ बरसों से |
लुभाएँ जीत के कुछ पल रुलाएं हार के कुछ पल ||

सुना करता हूँ मैं ये फ़लसफ़ा अक्सर ही लोगों से |
ज़रूरी प्यार में भी हैं मियाँ तकरार के कुछ पल ||

अगरचे आप से मिलना मुझे अब तक लगा अच्छा |
मगर आँखों में आँसू दे गए इस बार के कुछ पल ||

मज़ा क्या उस खुशी में है ये रोज़ेदार से पूछो |
दिलाते हैं जो उसको चाँद के दीदार के कुछ पल ||

सुखनवर हूँ सुखनवर ही रहूँगा आख़िरी दम तक |
मुझे अच्छे नहीं लगते कभी बेकार के कुछ पल ||

चमक सकता है किस्मत का सितारा आज उसका भी |
अता गर हो सकें ‘सैनी’ को भी सरकार के कुछ पल ||

डा०सुरेन्द्र सैनी

 

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