ख़ुद को जब उनके रूबरू रखना ।
मुख़्तसर सी ही गुफ़्तगू रखना ॥
इश्क़ का एक ही तो मतलब है ।
"दिल को अपने लहू-लहू रखना "॥
मुझको महंगा पड़ा हमेशा ही ।
उनसे मिलने की आरज़ू रखना ॥
सब पे आयद है आज ये जिम्मा ।
अपने गुलशन को ख़ूबरू रखना ॥
कब मुसीबत कहाँ से आ जाए ।
अपनी नज़रों को चार सू रखना ॥
और कुछ हो न हो ज़माने में ।
सोच घटिया कभी न तू रखना ॥
दिल तो मासूम है बड़ा इस पर ।
बोझ हरगिज़ न फ़ालतू रखना ॥
जिस वतन में जनम लिया तुमने ।
उसकी महफूज़ आबरू रखना ॥
आज तू सीख ले ये 'सैनी' से ।
दिल जवाँ चेहरा सुर्ख़रू रखना ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
मुख़्तसर सी ही गुफ़्तगू रखना ॥
इश्क़ का एक ही तो मतलब है ।
"दिल को अपने लहू-लहू रखना "॥
मुझको महंगा पड़ा हमेशा ही ।
उनसे मिलने की आरज़ू रखना ॥
सब पे आयद है आज ये जिम्मा ।
अपने गुलशन को ख़ूबरू रखना ॥
कब मुसीबत कहाँ से आ जाए ।
अपनी नज़रों को चार सू रखना ॥
और कुछ हो न हो ज़माने में ।
सोच घटिया कभी न तू रखना ॥
दिल तो मासूम है बड़ा इस पर ।
बोझ हरगिज़ न फ़ालतू रखना ॥
जिस वतन में जनम लिया तुमने ।
उसकी महफूज़ आबरू रखना ॥
आज तू सीख ले ये 'सैनी' से ।
दिल जवाँ चेहरा सुर्ख़रू रखना ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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