तुम्हें अपने दिल में बसाना हुआ |
तो दुश्मन हमारा ज़माना हुआ ||
अभी तक भी वादे पे ठहरे नहीं |
नया रोज़ उनका बहाना हुआ ||
चुनी हमने जब भी डगर प्यार की |
कहाँ साथ अपने ज़माना हुआ ||
हमारे मुक़द्दर में हँसना कहाँ |
अभी तक तो रोना रुलाना हुआ ||
हँसे आप तो हमको एसा लगा |
मुकम्मल हमारा तराना हुआ ||
ग़ज़ल कह के तारीफ़ तेरी करूँ |
मगर ढंग ये तो पुराना हुआ ||
तुझे ‘सैनी’ घर अब मयस्सर कहाँ |
बयाबान ही अब ठिकाना हुआ ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
तो दुश्मन हमारा ज़माना हुआ ||
अभी तक भी वादे पे ठहरे नहीं |
नया रोज़ उनका बहाना हुआ ||
चुनी हमने जब भी डगर प्यार की |
कहाँ साथ अपने ज़माना हुआ ||
हमारे मुक़द्दर में हँसना कहाँ |
अभी तक तो रोना रुलाना हुआ ||
हँसे आप तो हमको एसा लगा |
मुकम्मल हमारा तराना हुआ ||
ग़ज़ल कह के तारीफ़ तेरी करूँ |
मगर ढंग ये तो पुराना हुआ ||
तुझे ‘सैनी’ घर अब मयस्सर कहाँ |
बयाबान ही अब ठिकाना हुआ ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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