Wednesday, 16 July 2014

आशियाना

"बहुत मसरूफ़ है ख़ुद में ज़माना | "
फ़ुज़ूल उसको है अपना ग़म सुनाना || 

मुहब्बत का शजर जब भी लगाना | 
समर मीठा हो एसा ढूंढ लाना || 

मुक़ाबिल आप सी जब शख़्सियत है | 
मिरी ख़ुशक़िस्मती है हार जाना || 

रही है चित तुम्हारी पट तुम्हारी | 
बड़ा मुश्किल है तुम से पार पाना || 

लिहाज़ अब तो करो कुछ उम्र का तुम | 
अरे अब छोड़ भी दीजे सताना || 

किसी की आँख में जब भी नमी हो | 
ग़ज़ल मेरी उसे फ़ौरन सुनाना || 

बड़ा मबूत है सीना हमारा | 
तुम्हारा दिल करे जब आज़माना | 

भरी है आशिक़ी नग़मों मेरे | 
सुखन मेरा नहीं है सूफ़ियाना || 

चले आओ तुम्हे ‘सैनी’ बुलाये | 
सजा है उसके दिल का आशियाना || 

डा० सुरेन्द्र सैनी    

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