किन ख़यालों में चूर रहते हैं |
हम से वो दूर-दूर रहते हैं ||
मेरे दिल में जगह नहीं कोई |
इस में मेरे हुजूर रहते हैं ||
दिल में उनके भी हूक उठती है |
दूर मुझ से ज़रूर रहते हैं ||
साबिक़ा रोज़ है रिज़ालों से |
फिर भी हम बाशऊर रहते हैं ||
ताब उनकी न कोई ला पाए |
बन के वो कोहेनूर रहते हैं ||
जब भी उनको पुकारता हूँ मैं |
वो सरापा ज़ुहूर रहते हैं ||
एबदारी पे यार ‘सैनी’ की |
सब हमेशा ग़फ़ूर रहते हैं ||
डा०सुरेन्द्र सैनी
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