Sunday, 20 July 2014

ख़ुदा की बंदगी

ख़ुदा की बंदगी में जब किसी का ध्यान हो जाए |
मुसीबत हो बड़ी कितनी वही आसान हो जाए || 

इनायत जब भी मौला की किसी पर हो उसी पल वो | 
समझिएगा बशर वो नेक दिल इंसान हो जाए || 

ख़ुदा रहता नहीं अन्जान हरगिज़ अपने बन्दों से |
भले ही आदमी उससे कभी अनजान हो जाए || 

नज़र में हो हया मेरी सुखन में हो सदाक़त बस | 
ख़ुदाया हस्ती ये मेरी अज़ीमुश्शान हो जाए || 

झुका दूँ सर मैं तेरे सामने ये है मेरी चाहत | 
तेरे दरबार में पूरा ये बस अरमान हो जाए || 

इबादत कर सके तेरी ज़बां में है कहाँ हिम्मत | 
तू मन की जान ले मुझ पर तेरा एहसान हो जाए || 

नहीं हिम्मत है ‘सैनी’ में तुझे ढूंढे वो दुन्या में | 
मेरे मौला तू उसके दिल का ही मेहमान हो जाए || 

डा० सुरेन्द्र सैनी  

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