तुझको दिल से करूँ जुदा कैसे |
हो भी आख़िर ये हौसला कैसे ||
एक शिद्दत थी उसकी नज़रों में |
उसका इज़हार टालता कैसे ||
मेरी मंज़िल का छोर है ही नहीं |
ग़ाम गिन कर मैं देखता कैसे ||
हो रहा क़त्ल बेगुनाहों का |
अब ये सुलझे मुआमला कैसे ||
क़ैद में उम्र भर रहा तेरी |
“वो ज़माने को जानता कैसे ||”
फँस गया ख़ुद के मैं झमेलों में |
तेरे बारे में सोचता कैसे ||
मेरे जज़्बात का जो क़ातिल है |
मान लूँ उसको रहनुमा कैसे ||
रोज़ पी कर मैं शेर कहता हूँ |
ख़ुद कह दूँ मैं पारसा कैसे ||
मांग ली आज हस्ती सैनी’की |
यार को अब करे मना कैसे ||
डा०सुरेन्द्र सैनी
हो भी आख़िर ये हौसला कैसे ||
एक शिद्दत थी उसकी नज़रों में |
उसका इज़हार टालता कैसे ||
मेरी मंज़िल का छोर है ही नहीं |
ग़ाम गिन कर मैं देखता कैसे ||
हो रहा क़त्ल बेगुनाहों का |
अब ये सुलझे मुआमला कैसे ||
क़ैद में उम्र भर रहा तेरी |
“वो ज़माने को जानता कैसे ||”
फँस गया ख़ुद के मैं झमेलों में |
तेरे बारे में सोचता कैसे ||
मेरे जज़्बात का जो क़ातिल है |
मान लूँ उसको रहनुमा कैसे ||
रोज़ पी कर मैं शेर कहता हूँ |
ख़ुद कह दूँ मैं पारसा कैसे ||
मांग ली आज हस्ती सैनी’की |
यार को अब करे मना कैसे ||
डा०सुरेन्द्र सैनी