Thursday, 5 June 2014

चलना पड़ा

वक़्त के साथ चलना पड़ा ।
रास्तों को बदलना पड़ा ॥

थे इरादों के कच्चे मकान ।
आग में रोज़ तपना  पड़ा ॥

जब भी क़द थोड़ा ऊँचा हुआ ।
हर जगह सज्दा करना  पड़ा ॥

बात बच्चों की ऊँची रही ।
सामने उनके झुकना  पड़ा ॥

जब सहारा न अपने बने ।
ग़ैर के साथ चलना  पड़ा ॥

चाहिए था वतन आपको ।
तो शहीदों को मरना  पड़ा ॥

सख़्त जान आज 'सैनी' हुआ ।
मुश्किलों से गुज़रना पड़ा ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

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