वक़्त के साथ चलना पड़ा ।
रास्तों को बदलना पड़ा ॥
थे इरादों के कच्चे मकान ।
आग में रोज़ तपना पड़ा ॥
जब भी क़द थोड़ा ऊँचा हुआ ।
हर जगह सज्दा करना पड़ा ॥
बात बच्चों की ऊँची रही ।
सामने उनके झुकना पड़ा ॥
जब सहारा न अपने बने ।
ग़ैर के साथ चलना पड़ा ॥
चाहिए था वतन आपको ।
तो शहीदों को मरना पड़ा ॥
सख़्त जान आज 'सैनी' हुआ ।
मुश्किलों से गुज़रना पड़ा ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
रास्तों को बदलना पड़ा ॥
थे इरादों के कच्चे मकान ।
आग में रोज़ तपना पड़ा ॥
जब भी क़द थोड़ा ऊँचा हुआ ।
हर जगह सज्दा करना पड़ा ॥
बात बच्चों की ऊँची रही ।
सामने उनके झुकना पड़ा ॥
जब सहारा न अपने बने ।
ग़ैर के साथ चलना पड़ा ॥
चाहिए था वतन आपको ।
तो शहीदों को मरना पड़ा ॥
सख़्त जान आज 'सैनी' हुआ ।
मुश्किलों से गुज़रना पड़ा ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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