मुसीबत से जुदा इंसान कब था |
“सफ़र जीवन का ये आसान कब था ||
सफ़र की ताब तुम ही ला न पाए |
भला ये रास्ता सुनसान कब था ||
सभी समझा रहे थे बारहा पर |
मगर ये होश में इंसान कब था ||
उसे मैं आज भी बुत मानता हूँ |
नज़र में वो मेरी भगवान् कब था ||
किया है आज तक गुमराह सब को |
बशर इतना भी वो नादान कब था ||
तुम्हारी ही तरफ़ था मैं मुख़ातिब |
मगर मुझ पर तुम्हारा ध्यान कब था ||
हमेशा ही दिया इलज़ाम मुझको |
तेरी नीयत में ही ईमान कब था ||
चुका देता तेरे एहसान का क़र्ज़ |
चुकाना क़र्ज़ ये आसान कब था ||
सुधर ‘सैनी’ गया निस्बत में तेरी |
वगरना वो भला इंसान कब था ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
“सफ़र जीवन का ये आसान कब था ||
सफ़र की ताब तुम ही ला न पाए |
भला ये रास्ता सुनसान कब था ||
सभी समझा रहे थे बारहा पर |
मगर ये होश में इंसान कब था ||
उसे मैं आज भी बुत मानता हूँ |
नज़र में वो मेरी भगवान् कब था ||
किया है आज तक गुमराह सब को |
बशर इतना भी वो नादान कब था ||
तुम्हारी ही तरफ़ था मैं मुख़ातिब |
मगर मुझ पर तुम्हारा ध्यान कब था ||
हमेशा ही दिया इलज़ाम मुझको |
तेरी नीयत में ही ईमान कब था ||
चुका देता तेरे एहसान का क़र्ज़ |
चुकाना क़र्ज़ ये आसान कब था ||
सुधर ‘सैनी’ गया निस्बत में तेरी |
वगरना वो भला इंसान कब था ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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