Thursday, 26 June 2014

कब था

मुसीबत से जुदा इंसान कब था | 
“सफ़र जीवन का ये आसान कब था || 

सफ़र की ताब तुम ही ला न पाए | 
भला ये रास्ता सुनसान कब था || 

सभी समझा रहे थे बारहा पर | 
मगर ये होश में इंसान कब था || 

उसे मैं आज भी बुत मानता हूँ | 
नज़र में वो मेरी भगवान् कब था || 

किया है आज तक गुमराह सब को | 
बशर इतना भी वो नादान कब था || 

तुम्हारी ही तरफ़ था मैं मुख़ातिब | 
मगर मुझ पर तुम्हारा ध्यान कब था || 

हमेशा ही दिया इलज़ाम मुझको | 
तेरी नीयत में ही ईमान कब था || 

चुका देता तेरे एहसान का क़र्ज़ | 
चुकाना क़र्ज़ ये आसान कब था || 

सुधर ‘सैनी’ गया निस्बत में तेरी |
वगरना वो भला इंसान कब था || 

डा० सुरेन्द्र सैनी

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