Thursday, 26 June 2014

बुरी बात है

क्या हसीं चांदनी रात है | 
आज उनसे मुलाक़ात है ||

मैं हूँ दुन्या में सबसे अमीर | 
हाथ में आपका हाथ है ||

मैंने खाया है जो भी फ़रेब | 
वो हसीनों की सौग़ात है ||

दोस्ती करना है बात और | 
पर निभाना बड़ी बात है ||

हो सकूँ आपसे मैं ख़फ़ा | 
एसी मेरी न औक़ात है ||

वस्ल में करके इनकार यूँ | 
“दिल दुखाना बुरी बात है ||”

अब तो लहरा उठेगा सुखन | 
आज ग़ज़लों की बरसात है ||

इश्क़ में ढूंढिए मत कभी | 
शह कहाँ है कहाँ मात है ||

तू सदाक़त की राहों पे चल | 
फिर तो ‘सैनी’ तेरे साथ है ||

डा० सुरेन्द्र सैनी

कब था

मुसीबत से जुदा इंसान कब था | 
“सफ़र जीवन का ये आसान कब था || 

सफ़र की ताब तुम ही ला न पाए | 
भला ये रास्ता सुनसान कब था || 

सभी समझा रहे थे बारहा पर | 
मगर ये होश में इंसान कब था || 

उसे मैं आज भी बुत मानता हूँ | 
नज़र में वो मेरी भगवान् कब था || 

किया है आज तक गुमराह सब को | 
बशर इतना भी वो नादान कब था || 

तुम्हारी ही तरफ़ था मैं मुख़ातिब | 
मगर मुझ पर तुम्हारा ध्यान कब था || 

हमेशा ही दिया इलज़ाम मुझको | 
तेरी नीयत में ही ईमान कब था || 

चुका देता तेरे एहसान का क़र्ज़ | 
चुकाना क़र्ज़ ये आसान कब था || 

सुधर ‘सैनी’ गया निस्बत में तेरी |
वगरना वो भला इंसान कब था || 

डा० सुरेन्द्र सैनी

Friday, 13 June 2014

कब तक रहेगा



सितम का सिलसिला कब तक रहेगा । 
सनम से फ़ासिला कब तक रहेगा ॥ 

शराफ़त में लुटा है जो भला वो । 
शराफ़त से भला कब तक रहेगा ॥ 

रक़ीबों का हमारी चाहतों में । 
बताओ दाख़िला कब तक रहेगा ॥ 

परिंदे ने नहीं सोचा हवा में । 
सलामत घोसला कब तक रहेगा ॥ 

हमारा हर घड़ी दिल तोड़ते हैं । 
ये उनका मश्ग़ला कब तक रहेगा ॥ 

चला है जो किसी की जुस्तजू में । 
सफ़र में क़ाफ़िला कब तक रहेगा ॥ 

दिलों के दुश्मनों से आख़िरश अब । 
हमारा दिल मिला कब तक रहेगा ॥ 

अगर हिम्मत हो ख़ुद की पर्बतों सी । 
रुका ये ज़लज़ला कब तक रहेगा ॥ 

शिकम के वास्ते भी कुछ जतन कर । 
सुखन में मुब्तिला कब तक रहेगा ॥ 

टिका 'सैनी' तेरे अब हौसले पर । 
मगर ये हौसला कब तक रहेगा ॥ 

डा०सुरेन्द्र सैनी  

Thursday, 12 June 2014

वो ख़फ़ा नहीं रहता



जब तलक फ़ासिला नहीं रहता । 
रिश्तों में कुछ मज़ा नहीं रहता ॥ 

आप जब-जब भी साथ होते हैं । 
दर्द से वास्ता नहीं रहता ॥ 

ज़र्रे-ज़र्रे में है निहाँ गरचे । 
इन बुतों में ख़ुदा नहीं रहता ॥ 

इश्क़ में या नशे की हालत में । 
आदमी काम का नहीं रहता ॥ 

पल में दुःख है तो पल में सुख आये । 
वक़्त ये एक सा नहीं रहता ॥ 

हाल दिल का तुझे सुनाने पर । 
बोझ दिल पर बना नहीं रहता ॥ 

तंग कितना भी कीजे 'सैनी' को । 
देर तक वो ख़फ़ा नहीं रहता ॥ 

डा०सुरेन्द्र सैनी  

Sunday, 8 June 2014

बीमार लोग

एक दूजे को फ़ना करने को हैं तैयार लोग । 
हर तरफ़ लेकर खड़े हैं हाथ में तलवार लोग ॥

मैं जहाँ हूँ मस्त हूँ वो फ़िक़्र मेरी छोड़ दें । 
क्यूँ मेरे बारे में इतना सोचते बेकार लोग ॥

जिन्स में कर दी मिलावट तो नतीजा देखिये । 
"अब नज़र आने लगे हैं हर तरफ़ बीमार लोग "॥

इश्क़ जैसी पाक शय को भी नहीं बख़्शा गया । 
इसका भी करने लगे हैं आज कारोबार लोग ॥

हैं परीशाँ आज अपनी ख़ुद की बीमारी से सब । 
क्या करेंगे अब किसी बीमार की तीमार लोग ॥

बात खुल कर क्या ज़रा सी की किसी ख़ातून ने । 
झट से झूठे प्यार का बस करते हैं इज़हार लोग ॥

तू अगर 'सैनी' के बारे में भी थोड़ा सोच ले । 
फिर तो उसको इस जहाँ में देंगे अपना प्यार लोग ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी

Thursday, 5 June 2014

चलना पड़ा

वक़्त के साथ चलना पड़ा ।
रास्तों को बदलना पड़ा ॥

थे इरादों के कच्चे मकान ।
आग में रोज़ तपना  पड़ा ॥

जब भी क़द थोड़ा ऊँचा हुआ ।
हर जगह सज्दा करना  पड़ा ॥

बात बच्चों की ऊँची रही ।
सामने उनके झुकना  पड़ा ॥

जब सहारा न अपने बने ।
ग़ैर के साथ चलना  पड़ा ॥

चाहिए था वतन आपको ।
तो शहीदों को मरना  पड़ा ॥

सख़्त जान आज 'सैनी' हुआ ।
मुश्किलों से गुज़रना पड़ा ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी