Wednesday, 30 April 2014

उसूल -ए -दोस्ती


आये मिले तपाक से पर बात की नहीं ।
कुछ भी कहो मगर ये कोई दोस्ती  नहीं ॥ 

मेरी ख़ुशी में आपको जब कुछ ख़ुशी नहीं ।
दिलचस्पी आप में भी मुझे अब रही नहीं ॥

हाल -ए -तबाही  मेरा सभी जानते यहॉं ।
"ये और बात है कि तुझे आगाही नहीं "॥

इन्सान मानता नहीं मैं उसको  आज भी । 
नम आँख जिसकी ग़ैर के ग़म में हुई नहीं ॥

वो छोड़ कर चले गए अलगाव का शरर ।
एसी लगी वो आग जो अब तक बुझी नहीं ॥

पानी ,हवा ख़ुदा ने सभी को अता किये ।
ये हक़ हैं भीख इनके लिये मांगनी नहीँ ॥

उस्ताद लोग मिलके अगरचे संवार दें ।
अच्छे सुख़नवरों की यहां कुछ कमी नहीं ॥

गुज़री है उम्र आरज़ू-ए -वस्ल में तमाम ।
जब भी कहा यही कहा ठहरो अभी नहीं ॥

कुछ लोग दे रहे हैं बढ़ावा फ़साद को ।
इसके सिवा उन्हें तो कोई काम ही नहीं ॥

इसमें ज़रूर चाल दिखाई रक़ीब ने ।
उनकी निगाह वर्ना मुझे घूरती नहीं ॥

रिश्तों में ज़ंग लग गया 'सैनी' ये कैसा आज ।
अब वो महब्बतों में कहीँ आग सी नहीं  ॥

डा०सुरेन्द्र सैनी  



 




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