लो टूट गया उनसे मुहब्बत का भरम भी ।
आये न अयादत को वो लो चल दिए हम भी ॥
नज़्ज़ारा कभी एसा जुदाई का न देखा ।
चेहरे पे उदासी है हर इक आँख है नाम भी ॥
है इश्क़ के मारो का कहाँ आज ठिकाना ।
"मैख़ाना भी वीराँ है कलीसा भी हरम भी "॥
किरदार सियासत का क्यूँ इतना गिरा है आज ।
जो आज सियासत में घसीटा है धरम भी ॥
आदत हुई है मुझको सितम झेलने की रोज़ ।
मुझको रुला न पायेंगे अब तेरे सितम भी ॥
कुछ शौक सियासत का उन्हें एसा लगा है |
अब कूद गए अहले-सियासत में सनम भी ॥
जिस इश्क़ को इक आग का दरिया कहे ग़ालिब ।
उस आग में अब तो पड़े 'सैनी ' के क़दम भी ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
आये न अयादत को वो लो चल दिए हम भी ॥
नज़्ज़ारा कभी एसा जुदाई का न देखा ।
चेहरे पे उदासी है हर इक आँख है नाम भी ॥
है इश्क़ के मारो का कहाँ आज ठिकाना ।
"मैख़ाना भी वीराँ है कलीसा भी हरम भी "॥
किरदार सियासत का क्यूँ इतना गिरा है आज ।
जो आज सियासत में घसीटा है धरम भी ॥
आदत हुई है मुझको सितम झेलने की रोज़ ।
मुझको रुला न पायेंगे अब तेरे सितम भी ॥
कुछ शौक सियासत का उन्हें एसा लगा है |
अब कूद गए अहले-सियासत में सनम भी ॥
जिस इश्क़ को इक आग का दरिया कहे ग़ालिब ।
उस आग में अब तो पड़े 'सैनी ' के क़दम भी ॥
डा० सुरेन्द्र सैनी
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