Sunday, 6 April 2014

पूछा है दीवाने से

चँचल मन है, बूढ़ा तन है ,बेबस आने -जाने से ।
साक़ी अब तो घर भिजवादे थोड़ी सी मैख़ाने से ॥

कैसी भी मुश्किल हो हिम्मत के आगे घबराती है ।
मुश्किल बढ़ जाती है साहिब मुश्किल में घबराने से ॥

अफ़साने बन जाते हैं क्यूँ छोटी-छोटी बातो के ।
ग़लती हो जाती है सबसे जाने या अन्जाने से ॥

मत पीना -मत पीना अक्सर सब कहते तक़रीरों में ।
पर क्यूँ पीता है क्या जाकर पूछा है दीवाने से ॥

दिल का दर्द वही समझे है जिसके दिल पे गुज़रे है ।
और फ़ज़ीहत बढ़ जाती है दिल का दर्द सुनाने से ॥

दरहम -बरहम हालत अपनी तन्हाई के आलम में ।
चेहरे की रंगत बदली है आज तुम्हारे आने से ॥

ख़ुशफ़हमी में हो 'सैनी' का दामन मैला कर दोगे ।
"सूरज पर कुछ फ़र्क़ नहीं आता है धूल उड़ाने से "॥

डा० सुरेन्द्र सैनी

No comments:

Post a Comment