Wednesday, 29 January 2014

फ़ल्सफ़ा -ए -इश्क़

कभी मजनूँ बताते हैं कभी कहते हैं दीवाना ।
सबक़ वो आशिक़ी का चाहते हैं हमको समझाना ॥

नहीं समझा मैं अब तक भी तुम्हारे प्यार का मतलब ।
कभी फ़ुर्सत में मुझको फ़ल्सफ़ा -ए -इश्क़ बतलाना ॥

हमेशा शेरनी जैसी चमक रखती हो आँखों में ।
कभी तो देख कर मुझको हया से आप शर्माना ॥

अगर तारीफ़ ज़ुल्फ़ों की करूँ सावन बरसता है ।
मेरी आदत में शामिल है हमेशा भीग कर जाना ॥

तुम्हारे सामने पड़ते ही उड़ जाते हैं मेरे होश ।
ज़बाँ का भी उसी पल से शुरू होता है तुतलाना ॥

किवाड़ अपने मैं दिल के खोल कर बेख़ौफ़ सोता हूँ ।
करे जब भी तुम्हारा मन तो बेखटके चले आना ॥

हमें मंजूर है 'सैनी तेरा  ये चुलबुलापन भी ।
शिकन तू ज़िंदगी भर अपने चेहरे पर नहीं लाना ॥

डा०सुरेन्द्र सैनी   

Thursday, 23 January 2014

ईमान तो है

मन टूट गया तन टूट गया फिर भी ये बचा ईमान तो है । 
बेदम ही सही बरहम ही सही पर आज खड़ा इंसान तो है ॥ 

ज़र लूट लिया घर लूट लिया फिर भी वो लुटेरे सोच रहे।
लूटने के लिए लोगों में बची महफूज़ अभी भी जान तो है ॥ 

वो भूल गया सो भूल गया मुझको ये भरम बाक़ी है अभी । 
अन्जान नगर में अब भी मेरी थोड़ी ही सही पहचान तो है ॥ 

कर ज़ुल्म-ओ-सितम इंसान पे तू लिक्खा है कहाँ ये भी तो बता । 
तू पन्ने पलट कर देख ज़रा गीता न सही क़ुर्आन तो है ॥ 

तदबीर बनाता हूँ जो कभी तदबीर बिगड़ जाती है वही । 
कह दोगे जो तुम कर दूंगा वही यह कहना बड़ा आसान तो है ॥ 

जो तुमने लिया वो तुमने दिया ये बात नहीं यूँ ख़त्म हुई । 
जो काम हुआ उसका भी मियाँ अब मानने को एहसान तो है ॥ 

रोटी नहीं दे सकती है ग़ज़ल 'सैनी' ये हक़ीक़त जानता है । 
पर उसकी अदब में थोड़ी बहुत ग़ज़लों से ही क़ाइम शान तो है ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी

Tuesday, 21 January 2014

दोस्त सा नहीं मिलता

दिल को रख कर खुला नहीं मिलता ।
कोई मतलब बिना नहीं मिलता ॥

लोग कितने ही रोज़ मिलते हैं ।
एक भी दोस्त सा नहीं मिलता ॥

जिनको मिलता है ज़र विरासत में ।
दान का हौसला नहीं मिलता ॥

जिसपे चल कर मिले कभी मंज़िल ।
आज वो नक़श-ए -पा नहीं मिलता ॥

पारसाई का ढोंग करते हैं ।
पर कोई पारसा नहीं मिलता ॥

ज़ख़्म खाये पड़ा कोई कब से ।
नाम को रहनुमा नहीं मिलता ॥

जब भी इनआम बांटे जाते हैं ।
नाम 'सैनी' ही का नहीं मिलता ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Thursday, 9 January 2014

सब कुछ

वो इशारों में कह गया सब कुछ |
लुट के मेरा तो रह गया सब कुछ ||

ज़ब्त की हद ज़रा सी क्या टूटी |
मेरे अश्कों में बह गया सब कुछ ||

अब तो यादों की दुन्या सूनी है |
उसके खाबों में  रह गया सब कुछ ||

बोल पड़ता तो बात बढ़ जाती |
आज चुपचाप सह गया सब कुछ ||

प्यार का जो तिलिस्म था दिल में |
तेरे जाने से ढह गया सब कुछ ||

वक़्त की इक हवा के झोखे से |
देख ले आज यह गया गया सब कुछ ||

था इरादा बुरा नहीं कुछ भी  |
फिर भी 'सैनी' तू कह गया सब कुछ ||

डा० सुरेन्द्र सैनी   

Wednesday, 8 January 2014

फ़ुर्सत मुझे कहाँ

अब प्यार-व्यार जो करूँ  फ़ुर्सत मुझे कहाँ । 
फ़ुर्क़त के दर्द को सहूँ  फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥ 

सब कुछ निसार तो किया लोगों के वास्ते । 
झँझट में और अब पडूँ  फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥ 

जिनके अदब के वास्ते मेरा अदब गया । 
 उनके लिए ही फिर मरूँ  फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥ 

बेकाम मैं नहीं मुझे भी कितने काम हैं । 
सबको सफ़ाई आज दूँ  फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥ 

दुन्या के दर्द -ओ-ग़म में तो रोता रहा हूँ मैं । 
मैं ख़ुद पे थोड़ा रो सकूँ  फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥ 

लम्बे सफ़र की धूप में कुछ तो हैं सायबान । 
दो पल  कहीँ गुज़ार लूँ  फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥ 

थी उनसे जो शिकायतें मन में ही रह गयीं । 
'सैनी' से जाके जो कहूँ  फ़ुर्सत मुझे कहाँ ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी     

Thursday, 2 January 2014

मुस्कुराने पर

तिरछी-तिरछी नज़रों के मैं रहा निशाने पर ।
ये पता चला मुझको थोड़ा मुस्कुराने पर ॥

जानेमन के कूचे में कर्फ्यू जैसा आलम है ।
आज भी है पाबंदी मेरे आने-जाने पर ॥

आप तो न थे एसे फिर हमें बताओ ये ।
आशियाँ जला डाला किसके बरगलाने पर ॥

प्यार मुझसे करते हो पूछता था बरसों से ।
अब कहीं क़ुबूला है थोडा हिचकिचाने पर ॥

सोच कर ज़बाँ खोलो क्योंकि उनकी महफ़िल में ।
सर क़लम किये जाते आवाज़ें उठाने पर ॥

है तनातनी मुझसे अपने सारे लोगों की ।
जब से वो पधारें है मेरे आशियाने पर ॥

जब सज़ा मिली उनको उनसे छेड़खानी की ।
आगये रक़ीबों के होश फिर ठिकाने पर ॥

इम्तिहान क्या लेगा तू मेरी मुहब्बत का ।
ज़िंदगी निछावर है तेरे मुस्कुराने पर ॥

'सैनी' तेरा मुश्किल में आज तो वुजूद आया ।
क्या मज़ा मिला तुझको लोगों को हँसाने पर ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी