जान जाती है मेरी जान तेरे जाने से |
लौट आती है मेरी जान तेरे आने से ||
आपकी बात ही कुछ मान ले शायद वर्ना |
“दिल किसी तौर बहलता नहीं बहलाने से ||”
अर्श से फ़र्श पे आने का पता चलता है |
लौट के घर कोई जब आता है मैख़ाने से ||
याद रखिये वो किसी के भी नहीं हो सकते |
कान के कच्चे बहकते हैं जो बहकाने से ||
देख बदहाल गरानी ने किया है उसको |
रोज़ तोफ़ा न नया मांग तू दीवाने से ||
हाल दिल का बयाँ मैं कैसे करूँ दिलबर से |
उनको फ़ुर्सत नहीं उलझी लटें सुलझाने से ||
वक़्त कहता है कि तलवार उठा ली जाए |
भूत लातों के न मानेंगे ये समझाने से ||
घर नज़र आ रहे हैं रेल के डिब्बे जैसे |
रोज़ घर में नयी दीवार के उठ जाने से ||
आज हालात बदलने में मदद कर ‘सैनी’ |
काम चलता नहीं यूँ बैठ के बतियाने से ||
डा० सुरेन्द्र सैनी