Sunday, 3 August 2014

कुछ नहीं हुआ


दे दूंगा अपनी जान अगर कुछ नहीं हुआ |
धमकी तो दे दी मैंने मगर कुछ नहीं हुआ ||

चलते-चलाते लौट के फिर आ गए वहीं |
“राहें हुईं तमाम सफ़र कुछ नहीं हुआ ||”

हासिल हुई न जीत कभी हार ही हुई |
उल्फ़त में लड़ते-लड़ते ज़फ़र कुछ नहीं हुआ ||

आँखों से मेरी एक समुंदर सा बह गया |
उस बेवफा पे फिर भी असर कुछ नहीं हुआ ||

सहरा में था इरादा बनायेंगे आबशार |
दौड़े –फिरे यूँ शामो सहर कुछ नहीं हुआ ||

उम्मीद थी अवाम को राहत मिलेगी आज |
सरकार ने ये दी है ख़बर कुछ नहीं हुआ ||

‘सैनी’ ने भेज जब दिया पैग़ाम इश्क़ का |
फिर कुछ हुआ इधर क्यूँ उधर कुछ नहीं हुआ ||

डा०सुरेन्द्र सैनी

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