Wednesday, 30 April 2014

उसूल -ए -दोस्ती


आये मिले तपाक से पर बात की नहीं ।
कुछ भी कहो मगर ये कोई दोस्ती  नहीं ॥ 

मेरी ख़ुशी में आपको जब कुछ ख़ुशी नहीं ।
दिलचस्पी आप में भी मुझे अब रही नहीं ॥

हाल -ए -तबाही  मेरा सभी जानते यहॉं ।
"ये और बात है कि तुझे आगाही नहीं "॥

इन्सान मानता नहीं मैं उसको  आज भी । 
नम आँख जिसकी ग़ैर के ग़म में हुई नहीं ॥

वो छोड़ कर चले गए अलगाव का शरर ।
एसी लगी वो आग जो अब तक बुझी नहीं ॥

पानी ,हवा ख़ुदा ने सभी को अता किये ।
ये हक़ हैं भीख इनके लिये मांगनी नहीँ ॥

उस्ताद लोग मिलके अगरचे संवार दें ।
अच्छे सुख़नवरों की यहां कुछ कमी नहीं ॥

गुज़री है उम्र आरज़ू-ए -वस्ल में तमाम ।
जब भी कहा यही कहा ठहरो अभी नहीं ॥

कुछ लोग दे रहे हैं बढ़ावा फ़साद को ।
इसके सिवा उन्हें तो कोई काम ही नहीं ॥

इसमें ज़रूर चाल दिखाई रक़ीब ने ।
उनकी निगाह वर्ना मुझे घूरती नहीं ॥

रिश्तों में ज़ंग लग गया 'सैनी' ये कैसा आज ।
अब वो महब्बतों में कहीँ आग सी नहीं  ॥

डा०सुरेन्द्र सैनी  



 




Thursday, 24 April 2014

दुन्या

चाँद तारों से खेलती दुन्या ।
हो हमेशा ये आपकी दुन्या ॥

याद के दायरे में छोटी है ।
नाम को तो है ये बड़ी दुन्या ॥

एक दिन तो मज़ा चखाती है ।
क़द न ज़ुल्मी का देखती दुन्या ॥

लोग वो सब भरम में जीते हैं ।
जो ये सोचें कि है बुरी दुन्या ॥

है ज़मीर आपका अगर ऊँचा ।
तब इशारों पे नाचती दुन्या ॥

आइने की तरह ये दिखती है ।
हैं भले आप तो भली दुन्या ॥

ले चला साथ में हमें 'सैनी'।
और हमने भी देखली दुन्या ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी
 

Sunday, 20 April 2014

प्यार का इज़हार

दिन-ओ-दिन झूठ बोला जा रहा है । 
फ़ज़ा में ज़ह्र घोला जा रहा है ॥ 

नहीं ये शख़्स भोला जा रहा है । 
हक़ीक़त में सपोला जा रहा है ॥ 

करेंगे प्यार का इज़हार उनसे । 
"अभी तो मन टटोला जा रहा "॥ 

कमाई रोज़ की जिनकी करोडो । 
उन्हें सिक्कों में तोला जा रहा है ॥ 

लुटा कर आज मैं सब कुछ खड़ा हूँ । 
मेरे ख़ाबों का डोला जा रहा है ॥ 

जहाँ आबाद अम्न-ओ-चैन हर सू । 
वहीं बारूद गोला जा रहा है ॥ 

ख़ुदाया ख़ाक हो जाए हवा में । 
हवा में जो ये शोला जा रहा है ॥ 

निक़ाब अब डाल लीजे आप रुख़ पर \ 
मेरा ईमान डोला जा रहा है ॥ 

नहीं धेला मिला 'सैनी'को अब तक । 
ख़ज़ाना रोज़ खोला जा रहा है ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Wednesday, 16 April 2014

कलीसा भी हरम भी

लो टूट गया उनसे मुहब्बत का भरम भी । 
आये न अयादत को वो लो चल दिए हम भी ॥

नज़्ज़ारा कभी एसा जुदाई का न देखा । 
चेहरे पे उदासी है हर इक आँख है नाम भी ॥

है इश्क़ के मारो का कहाँ आज ठिकाना । 
"मैख़ाना भी वीराँ है कलीसा भी हरम भी "॥

किरदार सियासत का क्यूँ इतना गिरा है आज । 
जो आज सियासत में घसीटा है धरम भी ॥

आदत हुई है मुझको सितम झेलने की रोज़ । 
मुझको रुला न पायेंगे अब तेरे सितम भी ॥

कुछ शौक सियासत का उन्हें एसा लगा है | 
अब कूद गए अहले-सियासत में सनम भी ॥

जिस इश्क़ को इक आग का दरिया कहे ग़ालिब । 
उस आग में अब तो पड़े 'सैनी ' के क़दम भी ॥

डा० सुरेन्द्र सैनी

Sunday, 6 April 2014

पूछा है दीवाने से

चँचल मन है, बूढ़ा तन है ,बेबस आने -जाने से ।
साक़ी अब तो घर भिजवादे थोड़ी सी मैख़ाने से ॥

कैसी भी मुश्किल हो हिम्मत के आगे घबराती है ।
मुश्किल बढ़ जाती है साहिब मुश्किल में घबराने से ॥

अफ़साने बन जाते हैं क्यूँ छोटी-छोटी बातो के ।
ग़लती हो जाती है सबसे जाने या अन्जाने से ॥

मत पीना -मत पीना अक्सर सब कहते तक़रीरों में ।
पर क्यूँ पीता है क्या जाकर पूछा है दीवाने से ॥

दिल का दर्द वही समझे है जिसके दिल पे गुज़रे है ।
और फ़ज़ीहत बढ़ जाती है दिल का दर्द सुनाने से ॥

दरहम -बरहम हालत अपनी तन्हाई के आलम में ।
चेहरे की रंगत बदली है आज तुम्हारे आने से ॥

ख़ुशफ़हमी में हो 'सैनी' का दामन मैला कर दोगे ।
"सूरज पर कुछ फ़र्क़ नहीं आता है धूल उड़ाने से "॥

डा० सुरेन्द्र सैनी