Sunday, 25 May 2014

फ़रेब


ज़िद है उनके क़रीब जाने की । 
आरज़ू है फ़रेब खाने की ॥ 

ज़ख़्म सहने की जब नहीं क़ुव्वत । 
क्या ज़रुरत थी दिल लगाने की ॥ 

बैठ कर क़ातिलों की महफ़िल में । 
बात मत सोच मुस्कुराने की ॥ 

ज़ात पर कर लिया मेरी क़ब्ज़ा । 
अब नसीहत है भूल जाने की ॥ 

इक नशेमन है बिजलियाँ इतनी । 
फिर भी जुरअत है मुस्कुराने की ॥ 

हर घड़ी इम्तिहान लेते हैं । 
कैसी आदत है आज़माने की ॥ 

आओ चलते हैं लखनऊ 'सैनी'। 
रुत जो आयी है आम खाने की ॥ 

डा० सुरेन्द्र सैनी  

Monday, 12 May 2014

बात मत करना


दूर जाने की बात मत करना । 
दिल दुखाने की बात मत करना ॥ 

टूट कर अब बिखर न जाऊँ मैं । 
आज़माने की बात मत करना ॥ 

मुझसे वादा भले ही मत  करना । 
पर बहाने की बात मत करना ॥ 

मैं ज़माने से कुछ जुदा ही हूँ । 
तू ज़माने की बात मत करना ॥ 

है अगर काम कुछ तो आ जाना । 
बस फ़साने की बात मत करना ॥ 

आजकल रो रहा हूँ ख़ुद पर मैं । 
गुदगुदाने की बात मत करना ॥ 

साफ़गो आदमी है ये 'सैनी'।
कुछ छुपाने की बात मत करना ॥ 

डा०सुरेन्द्र सैनी